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24 अप्रेल 2017, छत्तीसगढ़ के सुकमा में नक्सली हमले में सीआरपीएफ़ के 26 जवान शहीद, 11 मार्च 2017 को सुकमा में ही माओवादियों से मुठभेड़ में सीआरपीएफ़ के 11 जवानों की मौत, छत्तीसगढ़ के ही दंतेवाड़ा में 6 अप्रैल 2010 को माओवादियों के अबतक के सबसे बड़े हमले में सीआरपीएफ़ के 75 जवान शहीद हुए और दंतेवाड़ में ही 17 मई 2010 को बारूदी सुरंग बिछाकर माओवादियों ने 36 सुरक्षाबलों को शहीद किया था।
कब तक मरते रहेंगे देश के जवान ? क्यों सरकार कोई ठोस क़दम नहीं उठा पाती ? क्या सरकार कमज़ोर है या ये चंद माओवादी और आतंकवादी ज्यादा बलशाली ? बॉर्डर पर जिनते जवान मारे जाते हैं, उससे अधिक देश के अन्दर क्यों ? क्या रणनीति की है कमी या फिर राजनीति के बलि चढ़ता है जवान ? या केन्द्र और राज्य सरकारों के बीच तालमेल न होना है इनकी शहादत की वजह ?
वजह जो भी हो देश के जवानो का यूं मारे जाना कोई मामूली बात नहीं। कुछ तो है जिसमें चूक का नतिजा हैं ये शहादतें। केन्द्र इसे राज्यसरकार की विफलता बोले या राज्यसरकार दोष केन्द्र को दे मगर जो जवानों की मौत हुई उससे कोई अपने पल्लू झाड़ नहीं सकता।
राज्य पुलिस और अर्द्धसैनिक बलों के बीच क्यों नहीं सही तालमेल हो पाता है ? आख़िर क्यों नहीं माओवादियों के लिए कोई परिभाषित नीति अपनाई जाती है या बनाई जाती है ? सारे राज्य अपनी रणनीति बनाकर कार्रवाई करते हैं। जितने भी माओवाद प्रभावित राज्य हैं क्यों नहीं उनकी कोई रणनीति है ?
राज्य पुलिस का सहयोग अर्द्धसैनिक बलों के लिए ज़रूरी है। आख़िर राज्य की ख़ुफ़िया तंत्र इतनी कमज़ोर क्यों है ? एक अहम बात जो ग़ौर करने की है वो ये कि आख़िर इन माओवादियों को अर्द्धसैनिक बलों की गतिविधियों की ख़बर कहां से मिल जाती है ? क्योंकि 200-300 माओवादियों का इकट्ठे जमा होकर हमला करना एक इत्तेफ़ाक तो नहीं लगता।
जब देश का एक बड़ा हिस्सा माओवादियों की चपेट में है, फिर क्यों नहीं एक ऐसी नीति बनती है? जिसे पूरे देश में चलाकर इनके ख़िलाफ़ एक अभियान छेड़ा जाए। पूर्ण परिभाषित नीति, जिसके तहत माओवादियों पर शिकंजा कसा जा सके। जिससे देश और उसके जवानों को नुक़सान कम से कम हो। आख़िर क्यों नहीं माओवादियों के लिए कोई परिभाषित नीति अपनाई जाती या बनाई जाती है ?
देश के जवानों की लाशों को तिरंगे में लपेटकर, सलामी देकर और चंद रुपए मुआवज़ा देकर सरकार के दामन साफ़ नहीं होंगे। जवानों की शहादत रुकनी चाहिए। देश ने अपने सपूत खोए हैं, सरकार को देश को जवाब देना होगा कि आगे उनकी रणनीति क्या है ?
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