Menu
blogid : 24416 postid : 1326541

क़िसमत ने दिया दग़ा, प्रथम व्यक्ति की रेस से बाहर, मुजरिम के कटघरे में आडवाणी और जोशी !

हमसब की बात
हमसब की बात
  • 20 Posts
  • 2 Comments

बीजेपी की स्थापना 1980 में हुई, संघ से इसके पुराना नाता रहा। 1984 के चुनाव में भाजपा ने लोकसभा के 2 सीट जीते। इन कुछ सालों में बीजेपी कुछ ख़ास नहीं कर सकी। फिर बीजेपी का एक चेहरा जिसने एक अहम विवाद को लेकर देश में लहर पैदा की। वो लहर था बाबरी मस्जिद और रामजन्म भूमि विवाद। इस विवाद ने न सिर्फ़ उस चेहरे को देश में मज़बूत पहचान दी, बल्कि पार्टी की जड़ देश की राजनीति में जमा दी।

25 सितंबर 1989 को सोमनाथ से आयोध्या के लिए एक रथयात्रा निकाली गई। इस रथयात्रा का उद्देश्य था, बाबरी मस्जिद की जगह राम मंदिर का निर्माण। इस यात्रा को निकालने वाला प्रमुख चेहरा था, लालकृष्ण आडवाणी का।

आडवाणी भाजपा की पहचान बन गए थे, जैसे आज नरेन्द्र मोदी हैं। नरेन्द्र मोदी उस वक्त आडवाणी के साथ थे, गुजरात ईकाई की अगुवाई वो ही कर रहे थे।

आडवाणी ने भारतीय राजनीति में धर्म का इस्तेमाल कर, हिन्दुस्तान की राजनीति मे नई लहर पैदा की। उनकी तब की रथयात्रा को तो लालू यादव ने बिहार में पंक्चर कर दिया। और मुलायम सिंह ने कारसेवकों पर गोली चलवाकर तब के बुलबुले को फोड़ दिया। मगर उस बुलबुले ने देश में धर्म की राजनीति को जन्म दे दिया।

यही वो वक्त था, जब आडवाणी की नीति ने यूपी में कांग्रेस की कमर तोड़ दी। मुलायम सिंह तब मुख्यमंत्री थे और उन्हें बीजेपी का समर्थन प्राप्त था। मगर गोली चलवाने की वजह से बीजेपी ने समर्थन वापस ले लिया। मुलायम सरकार ख़तरे में आ गई मगर तब कांग्रेस ने मुलायम की सरकार बचा दी। मगर शायद कांग्रेस की ये राजनीतिक भूल थी। सरकार मुलायम की बची और वोटर जो कांग्रेस के थे उनका पूरा रुझान सपा की तरफ़ हो गया। बाक़ी बचे कांग्रेस के वोटर भाजपा की ओर सरक गए। कांग्रेस का पत्ता यूपी में साफ़।

मगर बीजेपी ने धर्म से राजनीति को तब तक जोड़ दिया था। यही वो वक्त था, जब नरेन्द्र मोदी ने ख़ुद को बीजेपी में स्थापित किया। मोदी ने राष्ट्रीय पहचान बनाने की नींव रखी एवं बीजेपी प्रवक्ता और रथ के प्रबंधन में मोदी ने ख़ुद को स्थापित किया।

मगर आडवाणी का क़द उस वक्त भाजपा में सबसे आला था। मगर वक्त और क़िसमत ने उनका साथ नहीं दिया, शायद यही वजह रही की प्रधानमंत्री की रेस में रहने के बावजूद नंबर दो हो गए, और डिप्टी पीएम से संतोष करना पड़ा।

वही नरेन्द्र मोदी जो कभी आडवाणी की रथ पर उनके बगल में खड़े होकर अपनी पहचान बनाने की कोशिश कर रहे थे। 2014 के चुनाव के लिए सबको पीछे छोड़कर न सिर्फ़ प्रधानंत्री का दावेदार बने।  बल्कि उसने उस दावेदारी को ऐसा जमाया कि लोगो ने मोदी के नाम पर बीजेपी को वोट दिए। नतीजा एक जमाने बाद केन्द्र में बहुमत की सरकार बनी। ये बीजेपी का वो दौर हुआ जब कभी नंबर वन रहे नेता, इस दौर में वरिष्ठ नागरिक की श्रेणी में पेंशनयाफ्ता हो गए और सिर्फ़ सलाह देने लायक़ उनका वजूद रह गया।

और धीरे-धीरे वे चेहरे धुंधले हो गए, जिसके दम पर कभी बीजेपी ने चमक हासिल की थी। पार्टी में रंजिश भी हुई, मगर तब तक मोदी का सिक्का बीजेपी में जम चुका था।

हाल के दिनों में जब देश में राष्ट्रपति का चुनाव होना है, फिर वो नाम जो गुम हो रहे थे सामने आने लगे। राष्ट्रपति पद के लिए लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी का नाम राजनीति के गलियारों में सुना जाने लगा। यूं तो राष्ट्रपति और गवर्नर, राजनीतिक नहीं होना चाहिए पर कांग्रेस ने इसकी बुनियाद बहुत पहले ही रख दी है।

मगर शायद क़िसमत आडवाणी को यहां पर भी दग़ा दे गई। 25 साल पुराना मामला सामने दीवार बन कर आ गया। सीबीआई जो कि केन्द्र सरकार के अधीन काम करती है, 6 साल पहले 9 फरवरी 2011 को सुप्रीम कोर्ट में अपील कर ये मांग की थी कि हाई कोर्ट के उस आदेश को खारिज करते हुए आडवाणी समेत 21 अभियुक्तों के खिलाफ बाबरी मस्जिद गिराने के षड्यंत्र एवं अन्य धाराओं में मुकदमा चलाया जाए जिसके लिए हाईकोर्ट ने रोक लगा दी थी।

सीबीआई केन्द्र सरकार के अधीन काम करती है, और ये मामला 6 सालों से चुपचाप पड़ा था। फिर अचानक 15-20 दिन पहले इसका हरकत में आना और अदालत से गुहार लगाना के इन लोगों के ख़िलाफ़ साजिश करने का मुक़दमा चलना चाहिए। बीजेपी के अन्दर कुछ लोगों को नागवार ज़रूर गुज़र सकता है।

सर्वोच्च न्यायालय का ये फ़ैसला ऐसे वक्त में आया, जब आडवाणी या मुरलीमनोहर जोशी देश के प्रथम व्यक्ति बन सकते थे। पर अब ये सोचना भी नामुमकिन है। देश का राष्ट्रपति एक ऐसा व्यक्ति हो ही नहीं सकता जिसपर कोई आपराधिक मामला चल रहा हो।

सर्वोच्च न्यायालय का ये फ़ैसला वाक़ई ऐतिहासिक है। कोर्ट ने दो साल के अन्दर मामले को निपटाने का भी निर्देश दिया है।

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh