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भाजपा का यूपी विधानसभा चुनाव में तीहरे शतक के आंकड़े को पार करना, मोदी को क़द्दावर करता है । 1980 के बाद पहली बार किसी पार्टी ने यूपी में 300 का आंकड़ा पार किया है, तब कांग्रेस को 309 सीटें मिली थी। इसमें कोई शक नहीं कि यूपी की जनता ने, न सिर्फ़ अखिलेश-राहुल की जोड़ी को बल्कि मायावती को भी नकार दिया।
2007 से ही उत्तर प्रदेश की जनता सूबे को बहुतमत की सरकार दे रही है, मगर किसी को भी लगातार नहीं चुन रही। सपा के अंदरूनी कलह, मायावती की कमज़ोर होती राजनीति और राहुल गांधी को जनता ने नापसंद कर दिया।
अखिलेश यादव ने समाजवादी पार्टी पर तो अपना क़ब्ज़ा कर लिया मगर जनता पर पकड़ कमज़ोर कर ली। अखिलेश के लिए ये बहुत मुश्किल घड़ी है, क्योंकि उन्होंने पार्टी के पुराने नेताओं को दरकिनार कर अपना फ़ैसला किया मगर जीत न सके। जीतना तो दूर पहली बार सपा 100 के आंकड़े से नीचे रह गई बल्कि 50 को भी पार नहीं कर सकी और 47 सीटों पर सिमट गई। सपा की ये हालत के लिए लोग उन्हें ज़िम्मेदार ठहराएंगे ही।
ख़ैर बात ज़बरदस्त जीत दर्ज करने वाली भाजपा की और सूबे के होने वाले मुख्यमंत्री की। भाजपा ने अपने पुराने परंपरा की तरह चुनाव से पहले मुख्यमंत्री का नाम नहीं बताया था, मगर अब वक्त आ गया है। देश की सबसे बड़ी विधानसभा में विधायकों का नेता कौन होगा ?
यूं तो मुख्यमंत्री की दौड़ में कई शामिल है, पर इसमें केशव प्रसाद मौर्य सबसे आगे दिख रहे हैं। इनके अलावा जो नाम रेस में है वो हैं राजनाथ सिंह, योगी आत्यनाथ, मनोज सिन्हां और उमा भारती। और भी लोग हैं पर ये मुख्य हैं।
राजनाथ सिंह जो पहले भी यूपी के मुख्यमंत्री रह चुके हैं और सूबे के दिग्गज नेता भी हैं। वैसे तो राजनाथ सिंह हर वो योग्यता रखते हैं जो मुख्यमंत्री में हो मगर ये मोदी और अमित शाह के लिए शायद ख़ुशगवार न लगे क्योंकि इससे कहीं इनकी पकड़ यूपी में कमज़ोर पड़ सकती है।
बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष केशवप्रसाद मौर्य का अति पिछड़ी जाति से होना, इन्हें इस रेस में सबसे आगे ले जाता है क्योंकि इसबार बीजेपी में जीतने वाले लगभग सौ विधायक अति पिछड़ी जाती से हैं। 2019 में होने वाले आम चुनाव के लिए यूपी में बीजेपी का ये बड़ा दांव हो सकता है। वैसे प्रशासनिक अनुभव की कमी इन्हें दावेदारी में थोड़ा कमज़ोर करती है।
यूं तो बीजेपी ने बिना मुस्लिम उम्मीदवार के ये बड़ी जीत हासिल की है, मगर भविष्य में अगर इन्हें मुस्लिम को अपनी ओर आकर्षित करना है तो योगी आदित्यनाथ को इस पद से दूर रखना ज़रूरी होगा।
मनोज सिन्हा भी हो सकते हैं, जिन्हें संगठन का लंबा अनुभव भी है। मगर उनका भूमिहार जाति से होना शायद इस दावेदारी को कमज़ोर करता है।
उत्तर प्रदेश जातीय राजनीति का गढ़ है, ऐसे में मुख्यमंत्री का चुनाव भाजपा जातिय समिकरण और 2019 के आम चुनाव पे नज़र रखते हुऐ करेगी।
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