‘तू हिन्दु बनेगा न मुसलमान बनेगा, इंसान की औलाद है इंसान बनेगा’। 1959 में बनी ‘धूल का फूल’ फ़िल्म का ये गाना जिसे साहिर लुधियानवी ने लिखा और गाया था, मोहम्मद रफ़ी ने । ये गाना कोई मामूली संदेश देता हुआ गाना नहीं है। इस गाने पर अगर अमल हो जाए तो हिन्दुस्तान की मौजूदा हालात बिल्कुल बदल जाए।
देश में आज नफ़रत की राजनीति हो रही है। सिर्फ़ धर्म और ज़ात के नाम पर वोटों के बंटवारे की कोशिश की जा रही है, जिसमें राजनीतिक पार्टियां कामयाब भी है। कामयाबी उनके मक़सद की, जो देश के आवाम को दो धुरी में बांट रहे हैं। वोटों का ध्रुवीकरण कर रहे हैं।
कोई मंदिर वहीं बनाएंगे का नारा देता है, भले तारीख़ न बताता हो। कुछ मस्जिद बनवाने की बात करते हैं। कोई गोरखपुर में नफ़रत फैलाता है, तो कोई हैदराबाद से आता है। कोई उर्दू बाज़ार का नाम बदलकर हिन्दी बाज़ार करता है, तो कोई 15 मिनट के लिए पुलिस हटाने की। इन सब बातों में हमारा हिन्दुस्तान कहां है?
आल्लामा ईक़बाल ने जिस मुल्क को ‘सारे जहां से अच्छा हिन्दुस्तान’ कहा था वो हिन्दुस्तान कहां है ? जब ‘मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना’ फिर ये मज़हब के ठेकेदार क्यों हमारे बीच त्रिशूल और तलवार बांट रहे हैं ? जिस मुल्क ने आज़ादी की पहली लड़ाई (1857) में अपना नेता बहादुरशाह ज़फ़र को चुना, जबकि इस लड़ाई में सारे मज़हब के लोग थे, वो हिन्दुस्तान कहां है ?
जिस देश में भगत सिंह ने अपने बाल कटा दिए, अपनी पगड़ी उतार दी ताकि आज़ादी को धर्म से जोड़कर नहीं देखा जा सके, वो हिन्दुस्तान कहां है ?
आज राजनीति शब्द के मायने बदल रहे हैं, देश ख़तरे में है। न इसे अंग्रेज़ों से ख़तरा है, न इसे चीन से डर है और न ही पाकिस्तान इसका कुछ बिगाड़ सकता है। ये मुल्क तो महान है, मगर इसे ख़तरा भी यहीं की आवाम से है।
जब-तक आवाम नहीं सुधरेगी, नेता नहीं सुधरेंगे। जब-तक नेता नहीं सुधरेंगे, पार्टियां नहीं सुधरेंगी । जबतक पार्टियां नहीं सुधरेंगी, राजनीति नहीं सुधरेगी और अगर देश की राजनीति नहीं सुधरी, तो देश नहीं सुधरेगा।
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