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हम आज़ाद हिन्दुस्तान में जी रहे हैं तो ये उन क्रांतिकारियों की देन है, जिनकी बदौलत हम आज़ाद हैं…। ‘’देशप्रेम’’ या ‘’देशभक्ति’’ एक ऐसा शब्द जो किसी परिभाषा का मोहताज नहीं, बल्कि ख़ुद में व्याख्या है…। अगर देशभक्ति या देशप्रेम नहीं होता, तो आज हम ग़ुलाम ही होते…।
ये देशभक्ति ही थी, जिसने भगतसिंह, सुखदेव, राजगुरू, अश्फ़ाक़उल्लाह, पीर अली हों या ख़ुद्दीराम बोस के दिलों में मौत का डर नहीं बल्कि देश की आज़ादी समाई रखी थी…। उनके बलिदान की देन है कि हम आज़ाद हिन्दुस्तान के खुले आसमान में सांस ले रहे हैं…।
देशभक्ति की वैसे तो कोई परिभाषा नहीं है…। मगर आजकल देशप्रेम कुछ ख़ास लोगों की सोच में हामी भरने का नाम हो गया है…। वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हमले के बाद जिस तरह अमेरिका ने कहा था कि ‘’या तो आप मेरे साथ हैं, या मेरे ख़िलाफ़ हैं’’… आज हमारे देश में भी कुछ इसी तरह का माहौल बना हुआ है…। जिसे देखो ‘’देशभक्ति’’ या ‘’देशप्रेम’’ पर अपनी परिभाषा लिखे जा रहा है…। अगर आप उनकी परिभाषा में खरे उतरते हैं तो आप देशभक्त और देशप्रेमी हैं, वरना देशद्रोही या ग़द्दार…।
बात-बात पे पाकिस्तान भेजने की धमकी या सलाह…। कभी बीजेपी नेता गिरिराज सिंह, मोदी को वोट नहीं देने वाले को पाकिस्तान भेज रहे थे, तो कभी मुख़्तार अब्बास नक़वी बीफ़ खाने वाले को पाकिस्तान जाने का मशवरा…। वहीं साध्वी प्राची ने तो मुस्लिम फ़्री देश की ही बात कर दी…।
शिवसेना हो या महाराष्ट्र नव-निर्माण सेना (मनसे) ये तो ख़ैर न सिर्फ़ देशप्रेमी हैं, बल्कि महाराष्ट्र प्रेम भी इनके अन्दर कूट-कूट के भरा है…। ये जब चाहें जो चाहे करें, ये तो इनका राज्यप्रेम है…। ये बिहारियों को मारें या फिर उत्तर प्रदेश से आए लोगों को महाराष्ट्र से खदेड़ें…। ये तो इनका जन्मसिद्ध अधिकार है…। ये ठेले वाले का ठेला उलट दें या फिर टैक्सी वाले को इस लिए मारें कि उसे मराठी नहीं आती… यही तो है सच्चा राज्य प्रेम…!
उड़ी मामले के बाद से देश में अलग एक महौल है…। सरकार ने औपचारिक तौर से पाकिस्तान से पूरी तरह अपना रिश्ता भले ही न तोड़ा हो…। मगर मनसे ने तो फ़ैसला कर लिया कि पाकिस्तानी से नफ़रत ही पक्का देशप्रेम है…। भले वो पाकिस्तानी कलाकार ही क्यों न हो…। ये सरकार से ये मांग क्यों नहीं करते कि पाकिस्तान से हर तरह के रिश्ते तोड़ लिये जाएं, चाहे किसी भी तरह के रिश्ते क्यों न हों….।
राजठाकरे की पार्टी ‘मनसे’ ने करण जौहर और महेश भट्ट को खुले तौर से मारने पीटने तक की धमकी दे डाली, जब उन्होंने पाकिस्तान के कलाकारों को लेकर फ़िल्म बनाने की पैरवी की थी…। शुक्र है प्रधानमंत्री मोदी ने नवाज़ शरीफ़ को पाकिस्तान में सरप्राइज़ विज़िट अभी नहीं दी…। सरकार ने तो ऐसा कोई फ़ैसला नहीं लिया, मगर मनसे की धमकी के आगे करण जौहर का झुकना, फिर एमएनएस की ओर से कहा जाना कि वे ‘ऐ दिल है मुश्किल’ की रिलीज का विरोध नहीं करेंगे लेकिन जिन्होंने पाकिस्तानी कलाकारों को साइन किया हुआ है, वे आर्मी फंड में 5 करोड़ रुपए देंगे….। क्या ये तरीक़ा सही है…? अगर ये सही है तो फिर जेएनयू के एक छात्र नजीब के लापता होंने के मामले में वीसी का घेराव किया जाना, कैसे ग़लत हो गया…?
इन बातों से मुझे, 1970 की ख़ालिद अख़्तर द्वारा निर्देशित फ़िल्म नया रास्ता का एक गीत याद आ रहा है, जिसे लिखा था साहिर लुधियानवी ने और संगीत था एन दत्ता का…. मैंने पी शराब तुमने क्या पिया आदमी का ख़ून… मैं ज़लील हूं, तुमको क्या कहूं… तुम पिओ तो ठीक, हम पियें तो पाप… तुम जियो तो पुण्य, हम जियें तो पाप… तुम कहो तो सच, हम कहें तो झूठ… तुमको सब मुआफ़, ज़ुल्म हो के लूट… रीत और रिवाज सब तुम्हारे साथ… धर्म और समाज सब तुम्हारे साथ…।
जिस तरह मनसे ने करण जौहर और महेश भट्ट को पाकिस्तानी कलाकारों के साथ काम करने पर सड़क पर मारने की धमकी दी ये आम लोगों के लिए एक अपराध हो सकता है, मगर इनके लिए तो वही गीत के बोल है… हम करो तो पुण्य तुम करो तो पाप….।
मैं ये नहीं कह रहा कि ये ग़लत है, बल्कि उड़ी हमले या किसी भी हमले में या देश की हिफ़ाज़त करने में हुए शहीद सैनिकों के लिए हम जो भी करें वो कम है, मगर ये देशभक्ति सिखाने का ढंग ना क़ाबिले बरदाश्त ज़रूर है…।
ये सेना मतलब शिवसेना हो या महाराष्ट्र नव-निर्माण सेना तब कहां थे, जब पाकिस्तान से आए 10 लड़कों ने पूरे मुंबई क्या देश को हिलाकर रख दिया था…। तब इनकी देशभक्ति नहीं दिखी और तब ये न देश न महाराष्ट्र और न मुंबई को बचाने आगे आए…। तब क्यों नहीं इन्होंने उन लड़कों के ख़िलाफ़ देश की सेना के कंधे से कंधा मिलाया…? गोली खाने ये क्यों नहीं आगे आए….? तब देशभक्ति की परिभाषा क्या ये भूल गए थे…? तब क्यों नहीं पाकिस्तानी कलाकारों के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई थी…? उसके बाद मोदी के पाकिस्तान सरप्राइज़ विज़िट पर क्यों नहीं बोले थे….? जब आडवाणी ने पाकिस्तान में जाकर जिन्ना की तारीफ़ की थी, तो क्यों इन्हें सांप सुंघ गया था…? उनके वापस आने का विरोध क्यों नहीं किया…? न ही आडवाणी को किसी ने पाकिस्तान में बसने की सलाह दी…। फिर वही तुम करो तो पुण्य, और पाप सिर्फ़ आम लोगों के लिए…?
सरकारे काफ़ी हैं क़ानून बनाने और लागू करने के लिए…। हर कोई क़ानून न बना सकता है और न क़ानून तोड़ सकता है…। हां ऐसे ही क़ानून अगर हर किसी की माननी है, तो फिर माओवादियों, नागाओं और कश्मीर के अल्गाववादियों की भी क्यों न सुनें…? जंगलराज और गुंडाराज अगर मान्य है, तो फिर हर कोई अपने ढंग से क़ानून बनाएगा और हम उसे ग़लत नहीं ठहरा सकते….।
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