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सर्जिकल स्ट्राईक क़ाबिले तारीफ़ पर इंटेलिजेंस की अनदेखी क्यों…?

हमसब की बात
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कश्मीर का मुद्दा गहराया तो गहराता ही चला गया…। पिछले 3 सालों में घुसपैठ भी कोई कम नहीं हुआ…। पंजाब के पठानकोट में वायुसेना के कैंप पर हमला होना कोई छोटी घटना नहीं थी…। क्योंकि वो सीमा से बिल्कुल सटी कोई जगह नहीं थी… बल्कि आतंकवादी न सिर्फ़ सीमा में घुसे बल्कि, इतने हथियारों के साथ देश में सफ़र तय किया…। सरकार को तब इंटेलिजेंस के मामले में सतर्क तो होना चाहिए ही था…।

8 जुलाई 2016 को बुरहान वानी की मौत क्या हुई, कश्मीर में आग ही लग गई…। हंगामें हुए लोगों ने प्रदर्शन किए, सेना या पारा मिलिट्री पे पथराव हुए… जवाबी कार्रवाई में अबतक लगभग 100 लोगों की जान जा चुकी है…और सैकड़ों लोग ज़ख्मी हैं, कई युवाओं की जिंदगी उनकी आंख जाने से अंधेरी हो गई…। अर्द्ध सैनिक बल जिस तरह कश्मीर में उपद्रव को दबाने के लिए पैलेट गन का इस्तेमाल कर रही, वो एक आक्रोष को दबाने के लिए नफ़रत की दूसरी वजह पैदा करना है…। इसे कितना सही ठहराया जाए…? 12 साल का बच्चा, अपने घर के बाहर खेल रहा, तभी उसे पैलेट गन के कई छर्रे चेहरे और पेट में लगे, जिससे उसकी मौत तड़प-तड़प कर अस्पताल में हुई…। क्या वो आतंकवादी था, क्या उसने पत्थर सेना या पुलिस पे मारा था…? कश्मीर में ग़ुस्सा है, कश्मीरियों में नफ़रत है…। अगर ये नफ़रत सरकार से है, तो क्या उनसे पूछना या बात करना सरकार का फ़र्ज़ नहीं..?  बात करने से उन्हें भी लगेगा की सरकार उनका भी सोचती है… उनकी भी सुनती है…।

उरी आतंकवादी हमलें में 19 जवानों की शहादत के बाद जिस तरह भारतीय सेना ने सर्जिकल स्ट्राइक किया वो वाक़ई में क़ाबिले तारीफ़ बात है…। मगर उसका चुनावीकरण करना सही नहीं लग रहा…।

जिस तरह का माहौल बनता जा रहा है, और जिस तरह मोदी सरकार इस सर्जिकल स्ट्राइक को ऐसा बता रही मानो भारतीय सैनिक ने ये कार्रवाई पहली बार की हो…, और इस पूरी प्रक्रिया में सैनिकों से ज्यादा भारतीय जनता पार्टी का हाथ है…। जैसा की द हिन्दू पेपर में भी छपा है कि 30 अगस्त 2011 को सैनिकों ने एलओसी पार पाकिस्तान में घुस कर, अपने उन सैनिकों की शहादत का बदला लिया था जिसका सर काटकर पाकिस्तानी सिपाही ले गए थे… और दो जवान के बदले भारतीय सैनिकों ने तीन पाकिस्तानी सिपाहियों के सर काट लाए थे…। इस कार्रवाई का नाम था “ओपरेशन जिंजर”….।

मुझे याद आ रहा डॉ. राहत इंदौरी को वो शेर, ‘सरहद पे बहुत तनाव है क्या… पता तो करो, चुनाव है क्या’…दर असल मुझे ये समझ नहीं आ रहा है, सैन्य कार्रवाई हुई, सर्जिकल अटैक हुआ मगर उसके लिए यूपी में रक्षा मंत्री का सम्मान क्यों…? क्या चुनाव से इसका संबध बनाने की ये कोशिश नहीं है, क्या चुनाव प्रचार में इसे भुनाना मक़सद नहीं है…?

वैसे एक बात तो कहना ही पड़ेगा कि पाकिस्तानी घुसपैठ का बीजेपी सरकार से पुराना नाता लगता है…? मैं मुख्यबात पर आता हूं… जिस तरह बीजेपी आज सर्जिकल स्ट्राइक पे ख़ुश हो रही और इसका श्रेय ख़ुद ले रही, तब उसी तरह ये भी मानना पड़ेगा, कि अगर घुसपैठ होता है तो ये भी सरकार की ही कमी है… और देश का ख़ुफ़ियातंत्र फ़ेल है, उसे सुधारना भी सरकार की ही ज़िम्मादारी है…।

2016 में घुसपैठ, 2 जनवरी को पठानकोट हमाला, जिसमें 7 जवान और एक नागरिक शहीद हुए फिर 18 सितंबर को ऊरी हमला जिसमें 19 जवान शहीद हुए…।

देश में पाकिस्तान की तरफ़ से सबसे बड़ा घुसपैठ करगिल में हुआ था… मई – जुलाई 1999 में…। बहुत बड़ी बात थी कि पाकिस्तानी आर्मी और आतंकवादी भारत की सीमा में घुस रहे और हमें पता नही…। जब पता चला तब हमारी सेना ने बहादूरी दिखाई और दुश्मनों को पीछे ढकेल दिया… इस 26 जुलाई के दिन को “विजय दिवस” के रुप में मनाया जाता है…। इस कार्रवाई में हमारी सेना के कई जवान शहीद हुए थे…। तब सरकार बीजेपी की ही थी…। ख़ुफ़ियातंत्र तब भी फ़ेल हुआ था…।

24 दिसंबर 1999, इंडियन एयलाइन्स फ़्लाइट IC 814, जिसे काठमांडू (नेपाल) से दिल्ली के लिए उड़ान भरते ही हरकतुल मुजाहिदीन के आतंकवादियों ने हाईजैक कर लिया था…। कांधार में उतरने के बाद इन्होंने भारत में गिरफ़्तार मुश्ताक़ अहमद ज़रगर, अहमद उमर सईद शेख़ और मसूद अज़हर को इन 176 यात्रियों के बदले छोड़ने की मांग की…। और अंत में वाजपेयी सरकार को इन तीनों को कांधार भेजना पड़ा…।

13 दिसबंर 2001 का दिन, जब पड़ोसी देश से आए चंद आतंकवादियों ने हमारे लोकतंत्र के मंदिर पर हमला किया था… ये वो दिन था जब हमारे देश का सबसे सुरक्षित स्थान हमारा संसद सबसे ज्यादा ख़तरे में था… जहां क़ानून बनते हैं वहीं  सारे क़ानूनों को ताख़ पे रखे ये चंद लड़के ताबड़तोर गोलियां बरसा रहे थे…। और हमारे जांबाज़ सिपाही उनसे लोहा लिये हुए थे…। मगर बात फिर वही…. उस वक़्त भी हमरा इंटेलिजेंस कैसे फ़ेल हुआ…? इन पांच आतंकवादियों ने हमारे 7-8 लोगों को मारा मगर अपने मनसूबे में नाकाम रहे….। सोचने वाली बात है, कि अगर वो अपने नापाक इरादे में कामयाब हो जाते तो क्या होता….? तब अटलबिहारी वाजपेयी जी ही प्रधानमंत्री थे…।

बात 26 नवंबर 2008 की, जब मुंबई में 10 आतंकवादियों ने तबाही मचा दी थी… और जिसपे क़ाबू 29 नवंबर 2008 को पाया गया…। जिसमें कुल 166 लोगों की जानें गईं…। ये घटना मनमोहन सरकार के समय की थी…।

मेरा कहना है, कि ये सारे फ़िदायीन हमले हैं… मतलब आत्मघाती हमला… यानी जो मरने आया है अगर हमने उसे मार दिया तो ये कमाल नहीं, कमाल ये है कि हम उनके हमले को नाकामयाब करें…। हम अपना इंटेलिजेंस मज़बूत करें…। बॉर्डर पर सही नज़र रखें कि कोई अंदर ही न आ सके…।

ज़रूरत है देश के इंटेलिजेंस को मज़बूत करने की…। अगर सर्जिकल स्ट्राइक किसी पार्टी विशेष की सफ़लता है, तो फिर ये ज्यादातर बड़े घुसपैठ भी उन्हीं की सरकार के समय की बात है, उसकी ज़िम्मेदारी कौन लेगा…?

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