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दशहरा, बुराई पर अच्छाई की जीत की याद… रावण का वध श्रीराम के हाथो से… आज रावण तो बहुत हैं मगर कहीं अब राम नहीं दिखते… विभीषण भी मिल जाते हैं मगर लक्शमण नहीं मिलते… दशहरा सिर्फ़ एक त्योहार नहीं है, ये एक सीख है मगर हम सिर्फ़ इसे मनाते हैं, निभा नहीं पाते… वही हाल मुहर्रम का भी है, ये भी याद है नाइंसाफ़ी के लिए इंसाफ़ की लड़ाई का… हक़ के लिए जंग का… सच्चाई के लिए अपनी ज़िंदगी की परवाह नहीं करने का… मगर बात फिर वहीं पे आती है कि क्या सिर्फ़ हाय हुसैन – हाय हुसैन करने से हो गई याद ताज़ा… क्या आज है कोई हज़रत हुसैन की राह पर… हां कह पाना बहुत मुश्किल है शायद… शराब पीकर सड़कों पे हंगामे कर के, क्या हम सच में इस याद और इस त्योहार के साथ इंसाफ़ कर रहे हैं… कितने अफ़सोस की बात है कि हम ये आजतक नहीं समझ पाए की क्यों श्रीराम ने राक्षसों के ख़िलाफ़ युद्ध में बानर सेना की मदद ली… अरे छोटी सी बात जो मुझे समझ आई वो शायद ये है कि हमें एकदूसरे का साथ और सच्चाई के लिए हर किसी की मदद की सीख है… मगर आज हम तो बिना वजह जानवर क्या इंसान के ही दुश्मन बने हैं…।
मुहर्रम और दशहरा साथ है दोनो का मक़सद भी लगभग एक है… तो फिर हम भी अपना आचरण वैसा ही रखें जैसा हज़रत हुसैन और श्रीराम का था…. आपस में न उलझें और इंसाफ़ और सच्चाई की जंग की याद में मनाए जाने वाले इस त्योहार की गरीमा को बरक़रार रखें और एक दूसरे की भावनाओं का सम्मान करें….!!!
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