Menu
blogid : 24416 postid : 1242621

सड़क दुर्घटना में मौत, इंसानियत की कमी या क़ानून का डर !

हमसब की बात
हमसब की बात
  • 20 Posts
  • 2 Comments

10 अगस्त 2016 का दिन… दिल्ली के सुभाषनगर का एक सड़क… सुबह साढ़े पांच बजे का वक्त… ज़िंदगी की ज़िम्मेदारियों को अपने कंधे पे लिये… परिवार की उम्मीद और ख़ुद के, न जाने कितने सपनों को हक़ीक़त में बदलने की कोशिश में लगा ये शख़्स… उम्र 35 साल… जीवन से क़दमताल करता हुआ, सुबह शांत फ़िजाओं की ठंडक में सड़क के किनारे मस्त चला जा रहा था… पर उसे क्या पता कि पीछे से मौत एक टैंपो की शक्ल में हवा से बात करता चला आ रहा है… रफ़्तार इतनी की सवारी पर ड्राइवर का कोई नियंत्रण नहीं… फिर जो हुआ वो न सिर्फ़ एक दुर्घटना थी बल्कि ख़ून था…. मर्डर था… टैम्पो ने न सिर्फ़ उस व्यक्ति को धक्का मारा बल्कि उसके ड्राइवर ने उतरकर उस व्यक्ति की हालत देखी… ख़ून बह रहे थे… घायल व्यक्ति कराह रहा था…. मगर उस ड्राइवर का दिल नहीं पिघला… उसके अन्दर की इंसानियत नहीं जागी… बचाना तो दूर उसने तो क़रीब जाकर ये भी नहीं देखा की उस व्यक्ति की क्या हालत है… सिर्फ़ उतरकर दूर से देखा वापस आकर टैंपो में बैठा और चला गया…. इंसानियत की नज़र से देखें तो ये दुर्घटना नहीं बल्कि हत्या है… मगर ख़ूनी सिर्फ़ वो ऑटो ड्राईवर नहीं, बल्कि हर वो इंसान है जिसने घायल को तड़पते देखा… जिसने व्यक्ति को ख़ून में लथपथ देखा… मगर उनकी इंसानियत ने हिल्लोरे नहीं मारे… किसी ने भी उस मरते इंसान की ज़िंदगी बचाने की पहल तक नहीं की….. बल्कि एक शख्स तो उसका मोबाइल तक  लेकर चंपत हो गया… ज़िंदगी की सांस धीरे-धीरे थमने लगी और इंसानियत दम तोड़ने लगी… न किसी ने बचाया न ही किसी ने पुलिस को फ़ोन किया और न किसी ने एंबुलेंस बुलाने की कोशिश की…. सिर्फ़ लोग गुज़रते रहे और ये तड़पता रहा…. लोग साइकिल से गुज़रे… रिक्शा भी गुज़रा.. ठेला गया… स्कूटर सवार भी गुज़रे…. आधे घंटे में लगभग 200 लोगों ने उस घायल व्यक्ति को देखा, मगर सिर्फ़ एक तमाशे की तरह… ख़ून में संदे एक इंसान की तड़प में किसी ने उसकी ज़िंदगी की चाहत नहीं देखी…  लोगों को ख़ून सिर्फ़ एक रंग लगा, मरता इंसान पराया लगा और उस तड़पते घायल व्यक्ति में किसी ने ये नहीं देखा कि कल उसकी जगह वो ख़ुद भी हो सकता है…. या फिर ये भी नहीं सोचा कि मेरा थोड़ा सा वक्त किसी की ज़िंदगी बन सकता है… आख़िर ये भी किसी का बाप होगा… किसी का पति… किसी मां का बेटा… किसी के बुढापे का सहारा…. मतलब उस इंसान के साथ इंसानियत तड़पती रही… भावनाएं रोती रहीं और आख़िर मानवता ने दम तोड़ दिया….

odisa3

वो व्यक्ति तो मर गया मगर कई सवाल छोड़ गया… क्या हमे अब इंसान कहलाने का हक़ है…? रेडियो, टीवी अख़बार पढ़कर तो हम बड़े-बड़े दावे करते हैं… हम जानवरों की रक्षा की बात भी करते हैं… मगर क्या हम इंसान की ज़िंदगी की क़ीमत भूल गए…? क्या इंसान अब जानवर से भी पीछे हो गया…? कोई हमारे सामने मौत से लड़ रहा और हम उसे जंग हारता हुआ अकेले छोड़ देते हैं। सिर्फ़ इसलिए क्योंकि हमारे पास वक्त नहीं….? या हमें दफ्तर पहुंचने में देर हो जाएगी…? या कहीं पार्टी न छूट जाए…? या घर पहुंचने में देर न हो जाए….? या मेरी बस न मिस हो जाए या फिर ये सोचकर कि मुझे क्या इस इंसान से मेरा रिश्ता क्या…? या फिर ये लगता है कि इसके मरने जीने से हमें क्या फ़ायदा या नुक़सान…? या फिर हम किसी की ज़िंदगी बचाने के लिए भी थोड़ी तकलीफ़ गवारा नहीं कर सकते…?

जबकि सुप्रीमकोर्ट ने ये कह दिया है कि घायल को अस्पताल पहुंचाने वाले से न तो हॉस्पिटल का स्टॉफ़ कोई सवाल करेगा और न ही पुलिस किसी मामले में उस व्यक्ति को बीच में लाएगी न उसकी मर्ज़ी के बग़ैर उसे गवाह बनाएगी…. फिर क्या हमें जानकारी की कमी है….? या सरकार के द्वारा जागरुकता फैलाने में कोताही है….? इसे तो ट्रैफ़िक पुलिस के द्वारा हर चौराहे पे होर्डिंग के ज़रिए, पेपर और टीवी के द्वारा लोगों तक ज्यादा से ज्यादा पहुंचाना चाहिए। ताकि कम से कम लोग क़ानूनी पचड़े की डर से जो घायल की मदद नहीं करते वो न हो….. औऱ लोग मदद कर पाएं….।

दिल्ली में क़रीब पांच हज़ार ट्रैफ़िक पुलिसकर्मी है मगर ज़रूरत लगभग 10-11 हज़ार ट्रैफिक पुलिसकर्मी की है… अभी लगभग 2100 गाड़ियों पे एक पुलिस वाला है जो कि ज़रूरत से बहुत कम है… अगर देश की राजधानी ये हाल है तो देश के बाक़ी हिस्सों की बात ही क्या की जाए ।

एक रिपोर्ट के मुताबिक देश में साल 2015 में सड़क दुर्घटना में 1,46,000 से ज्यादा लोगों की मौत हुई, जो कि 2014 में हुए 1,39,671 लोगों की मौत से ज्यादा थी। जबकि घायलों की संख्या 2015 में लगभग चार लाख थी और हर दिन सड़क दुर्घटना में होने वाली मौत लगभग चार सौ।

केन्द्रीय भूतल एवं परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने मोटर वाहन संशोधन बिल 2016 का एक मसौदा तैय्यार करवाया है… जिसमें जुर्माने को पहले से बढा दिया गया है। इसके तहत दूसरी बार अपराध करने पर लाइसेंस अब रद्द कर दिया जाएगा एवं ड्राइविंग रिफ्रेशर कोर्स करने के बाद ही लाइसेंस वापस मिलेगा।

ओवर स्पीडिंग मामले में हल्के सवारी गाड़ी पर एक हज़ार रुपए का दंड, जबकि मध्यम दर्जे के यात्री वाहनों पर दो हज़ार रुपए का फ़ाइन लगेगा, जो कि मौजूदा प्रावधान में चार सौ रुपए है। शराब पीकर ड्राइविंग करने पर अब दस हज़ार रुपए का फ़ाइन अब भरना पड़ेगा जोकि अभी दो हज़ार रुपए है।

बिना हेलमेट बाइक चलाने पर अब सौ रुपए की जगह हज़ार रुपए फ़ाइन का प्रावधान होगा साथ ही तीन महीने के लिए ड्राइविंग लाइसेंस रद्द करने का भी प्रावधान होगा। सीट बेल्ट न लगाने पर सौ की जगह हज़ार रुपए का जुर्माना। एंबुलेस एवं फ़ायर ब्रिगेड की गाड़ियों को जगह न देने पर 10,000 रुपए की पेनाल्टी लगेगी। 18 वर्ष से कम उम्र में गाड़ी चलाते सड़क पर पकड़ाए बच्चों के माता-पिता ज़िम्मेदार होंगे, जिन्हें तीन साल की जेल और 25 हज़ार रुपए तक का जुर्माना देना होगा साथ ही गाड़ी का पंजीकरण भी रद्द किया जा सकता है।

सुप्रीमकोर्ट ने 30 मार्च 2016 को जस्टिस वी गोपाल गोडा और अरूण मिश्रा की बेंच में एक गाइडलाइन दिया जिसमें गुड सैमैरिटेन्स की हिफ़ाज़त की बात की गई। मतलब जिसने किसी घायल को अस्पताल पहुंचाया तो उसके द्वारा किये गए अच्छाई को इज्जत दिया जाएगा और पुलिस, कोर्ट या अस्पतालकर्मी द्वारा उसे परेशान नहीं किया जाएगा। क्योंकि दि लॉ कमिशन ऑफ़ इंडिया के मुताबिक कुल दुर्घटनाओं में हुए मौत का 50 प्रतिशत सिर्फ़ वक्त पर इलाज न होने की वजह से होता है जो लोगों द्वारा क़ानूनी पचड़े की डर से मदद के लिए आगे नहीं आने की वजह से होता है।

नियम पहले भी थे और आगे भी रहेंगे। जुर्माना पहले भी था और भविष्य में भी रहेगा। मगर सिर्फ़ जुर्माना बढ़ा देने से दुर्घटनाएं नहीं रोकी जा सकती हैं। ज़रूरत है लोगों को जागरुक बनाने की, कोर्ट के इस फ़ैसले को लोगों तक पहुंचाने की। जगह-जगह होर्डिंग के माध्यम से सही संदेश आवाम तक ले जाने की। जुर्माने अपनी जगह सही हैं मगर जब लोग खुद जागरुक होंगे तो दुर्घटनाएं भी कम होंगी, जिससे लोगों की क़ीमती ज़िंदगियां ज़रा सी लापरवाही में नहीं जाएंगी। और न ही लोग किसी घायल की मदद करने से डरेंगे।

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh