Menu
blogid : 24416 postid : 1236788

इंसानियत को कांधा !

हमसब की बात
हमसब की बात
  • 20 Posts
  • 2 Comments

14022272_914791765331117_2237473161841343666_n

दाना मांझी, तुमने न सिर्फ़ अपनी बीवी की लाश को अपने कंधे पर उठाया बल्कि तुमने इंसानियत के शव को कंधा दिया है… तुमने हर उस इंसान की आत्मा को अपने कंधे पर उठाया जिसने तुम्हें ऐसा करने पर मजबूर किया या जिन लोगों ने भी तुम्हें अपनी पत्नी की लाश को अकेले कंधे पर लिये जाता देखा… तुम्हारी बेटी की आंखों से बहते आंसू भले उन आंखों में पानी ना ला सके हों जिन्होंने तुम्हें और तुम्हारी बेटी को इस हाल में देखा और मदद नहीं की… मगर इस आंसू ने उनकी आत्माओं को डूबो ज़रूर डाला है…
तुम्हारे बढ़ते क़दम भले ही न लड़खड़ा रहे हों, मगर तुम्हारा ये काम हमें ज़रूर रुला रहा है। हम सोच रहे हैं कि कैसे तुमने इतने बड़े दुख का वज़न अकेले अपने कंधे पर उठाया…? तुम बढ़ते गए, बीवी के शव को कांधे पर अकेले लिए, ज़ाहिर है तुम्हारे दुख का क्या पूछना… तुम्हारी बेटी का अपने हाथों में मोटरी लेकर तुम्हारे साथ सिसकते हुए चलना, हाथों से आंसू को संभालना की कहीं तुम न कमज़ोर पड़ जाओ कि 50 किमी का सफ़र अभी बाक़ी है.. 10 किमी चले हो, बाबा अभी 50 किमी बाक़ी है… उसकी मां की अंतिम यात्रा कहीं बीच में न रुक जाए… जीते जी तो मानव अधिकार न मिल सका… मौत का तो अधिकार दिला दो …. इलाज तो हो न सका अंतिम संस्कार तो ठीक से हो जाता… पता नहीं दाना मांझी तुम क्या-क्या सोच रहे होगे मगर रुक नहीं रहे थे… तुम्हारे क़दम बढ़ रहे थे सफ़र तय हो रहा था… मगर इंसानियत पिछे हटती जा रही थी मानवता की मौत होती जा रही थी… कंधे पर शव ज़रूर तुम्हारे पत्नी की थी मगर तुम भारत के विकास की दावेदारी को कांधा दे रहे थे… ‘’सबका साथ, सबका विकास’’ का नारा शायद तुम्हारे दिमाग़ में घूम रहा होगा… शायद तुम सोच रहे होगे कि सबका साथ है तो फिर मैं अकेला क्यों चार कंधों की ज़िम्मेदारी अकेले निभा रहा…. सबका विकास होगा तो फिर मेरी पत्नी का ये हाल क्यूं हुआ… क्यों बिना इलाज के वो मर गई…. मर गई तो मर गई किसी ने भी मदद क्यों नहीं की…. बेटी बचाओ योजना सरकार चला रही, और एक बेटी अपने बाप के कंधे पर किसी लकड़ी की घट्ठर की तरह अपनी मां की अंतिम यात्रा में 60 किमी का सफ़र रोते-रोते तय कर रही…
घटना उड़ीसा के कालाहांडी की है जो भारी अकाल का शिकार रहा है… एक औरत की मौत अस्पताल में टीबी की बीमारी से हो गई… उसके पति के पास इतना पैसा नहीं था कि उसके शव को अस्पताल से 60 किमी दूर अपने गांव किसी सवारी का किराया देकर ले जा सके… उड़ीसा सरकार ने फ़रवरी 2016 में सूबे में ‘महापरायण’ योजना शुरू किया है जिसके तहत जब किसी की मौत अस्पताल में हो जाए तो उसके शव को घर तक एंबुलेंस से छोड़ी जाएगा…. मगर कहां गई योजना और कहां गया ऐंबूलेंस ??
मीडिया को जबतक ख़बर लगी दाना मांझी 10 किमी का सफ़र अपनी पत्नी को कांधे पर लिये बेटी के साथ पैदल तय कर चुका था… फिर ज़िलाधिकारी को मीडिया वालों ने फ़ोन किया और बाक़ी के 50 किमी की यात्रा के लिए ऐंबूलेंस की व्यवस्था की गई…
याद आ गया दशरथ मांझी का पत्नी प्रेम, इलाज के लिए अस्पताल ले जाने में पहाड़ सामने आ गया और वो अपनी बीवी को अस्पताल नहीं पहुंचा सका तो लगभग 22 साल तक लगातार पहाड़ तोड़ता रहा और आख़िरकार उसने पहाड़ का सीना चीरकर रास्ता बना ही दिया… और 55 किमी की दूरी को 22 साल के अथक प्रयास के बाद फ़कत 15 किमी कर दिया… वो भी एक जंग थी, सिस्टम के साथ… जो शांति से ज़रूर किया गया था मगर सरकार की मदद के बिना वो काम था जो सरकार की ज़िम्मेदारी को एक अकेले ने कर दिखाया था… यहां भी दाना मांझी ने जो किया वो सिस्टम के एक हिस्से की कमज़ोरी को ही दिखला रहा… एक ग़रीब इंसान की ज़िंदगी में कितना दर्द होता है, इससे बड़ा उसका उदाहरण और कुछ भी नहीं..।
वर्ल्ड वेल्थ रिपोर्ट के मुताबिक़, भारत व्यक्तिगत संपत्ति के मामले में विश्व का सातवां सबसे धनी देश है… मगर दाना मांझी भी उसी देश का एक व्यक्ति है, जिसके जेब में इतने पैसे भी नहीं की बीवी का इलाज करा सकता । यहां तक की मरने के बाद किसी सवारी को किराया दे सकता…। बात भले नेता बड़ी-बड़ी करते हैं, योजनाएं भी देश में एक से बढ़कर एक शुरू होती हैं पर भीड़ का सबसे पिछला व्यक्ति आज भी समाज में इंसान के दर्जे में नहीं आ पाया है… डीजिटल हो रहा है इंडिया, मुल्क आगे बढ़ रहा है…. हम तरक्क़ी कर रहे हैं, भारत विकास कर रहा है मगर कालाहांडी जैसी जगह अगर ग़रीब है, दाना मांझी की बीवी की मौत की वजह अगर पैसे की कमी है तो डीजिटल इंडिया का क्या फ़ायदा…?
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक़ पिछले साल 2015 में क़रीब 22 लाख टीबी के मामले भारत में पाए गए और इसी दरमयान विश्व में लगभग 96 लाख मामले… वहीं भारत में हर साल लगभग 2.20 लाख मौतें टीबी से होती हैं….।
हम भले ही लाल क़िले से पड़ोसी मुल्क को चुनौती दे लें, भले ही ख़ुद की पीठ ख़ुद की तरक्क़ी का पैमाना बनाकर थपथपा लें… मगर विकास तब होगा, जब देश के किसी सबसे पीछे की किसी गांव के सबसे निचले तबक़े के व्यक्ति का विकास होगा और उस गांव का विकास होगा जहां ग़रीबी और अकाल ने डेरा जमा लिया है…।

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh