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हैवानियत का सबूत है ‘’बलात्कार’’

हमसब की बात
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दर्द, तकलीफ़, दुख, ज़लालत, शर्मिन्दगी बल्कि हर वो लव्ज़ जिससे दुख जुड़ा है, अब उस परिवार के साथ जुड़ गया। एक घटना जिसने बुलंदशहर की बुलंदी को ज़मीदोज़ कर दिया। 14 साल की बेटी और मां के साथ जो हादसा हुआ, वो एक ऐसी घिनौनी हरकत है जिसे किसी भी हालत में नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता, और न ही उस घटना के गुनाहगारों को माफ़।

एक पिता जो पति भी है बलात्कार की शिकार एक बेटी तो दूसरी बीवी का पिता जो उस महिला का पति जब ये कहता है कि ‘’अगर मुझे इंसाफ़ नहीं मिला तो मैं ख़ुदकुशी कर लूंगा’’ वो कहता है कि ‘’मेरी बेटी मुझे पापा-पापा कहकर पुकारती रही और मैं कुछ नहीं कर सका’’ उसकी भरी आवाज़ उसके दर्द को बयां करने के लिए काफ़ी हैं। बोलते हुए उसके लव्ज़ तब लड़खड़ा जाते हैं जब वो भयानक मंज़र उसकी आंखों के सामने आ जाता है।

मगर क्या हर घटना का राजनीतिकरण ज़रूरी है? ब्लात्कार की घटना तो जैसे आम होती जा रही है, इंसानों की फ़ितरत धीरे-धीरे जानवरों में तबदील हो रही है। जो हालात देश का होता जा रहा है ये हरगिज़ बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। अभी लिख ही रहा था कि एक और घटना बलात्कार की पढ़ी वो भी यूपी की ही। एक 19 वर्षीय युवती के साथ सामुहिक दुष्कर्म किया गया दिल्ली-लखनऊ हाइवे पर।

हरियाणा की घटना तो याद ही होगी। एक युवती के साथ 3 साल पहले जिन लोगों ने बलात्कार किया था, फिर तीन साल बाद सामुहिक बलात्कार किया। सिर्फ़ इसलिए क्योंकि उसने पुलिस में उन लोगों के ख़िलाफ़ रिपोर्ट की थी। जिसके लिए उन लड़कों को जेल जाना पड़ा था। जब ज़मानत पर रिहा हुए तो इस घटना को अंजाम दिया और उस लड़की को धमकी। यहां तक की 3 महीने तक की बच्ची के साथ रेप का मामला सामने आया है। क्यों इतना संवेदनहीन हो चुका है हमारा समाज ? जिसे किसी की चीख़ में  दर्द और तकलीफ़ महसूस नहीं होती ?

एक रिपोर्ट के मुताबिक़ देश में हर साल 7200 से ज्यादा माइनर लड़कियों के साथ बलात्कर होते हैं। इस मामले में भारत का दुनिया में 7 वां स्थान है, जबकि चीन का पहला। रेप भारत में लड़कियों एवं महिलाओं के साथ होने वाले अपराध में चौथा सबसे आम जुर्म है। टाइम्स ऑफ़ इंडिया में छपे राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्योरो के एक डाटा के मुताबिक़, भारत में हर दिन लगभग 93 महिलाओं के साथ बलात्कार होने की बात है।

मगर बात ये नहीं के कब और कितने बलात्कार हुए, बात ये है कि क्यों हो रहे हैं ये अपराध ? क्या कारण है कि इस हद तक हैवानियत हावी होती जा रही है ?

जब एक लड़की या महिला का बलात्कार उसके बाप, भाई, बहन, बेटा या बेटी के सामने होता है, तो क्या गुज़रता है उस परिवार के हर एक सदस्य के साथ, इसका जीता जागता उदाहरण बन गया वो परिवार, जिसके साथ हाल के दिनों में बुलंदशहर में ये दुखद घटना घटी। जहां हथियार के बल पे लगभग 13 लोगों ने मां-बेटी दोनों के साथ उसके परिवार के सामने बलात्कार किया। जब बेटी बाप को और एक पत्नी अपने पति को सहायता के लिए बुला रही हो और वो उसकी सहायता नहीं कर पाया। घटना के बाद भी जब पुलिस से सहायता की गुहार की गई तो एक तो फ़ोन नहीं लगे नंबर 100 पे और जब लगे तो भी उनके पहुंचने में इतनी देरी। हॉस्पीटल में डॉक्टर का भी संवेदनाहीन व्यवहार जिसे धरती पर भगवान का रूप कहा जाता है। बाक़ी जो बचा उसे राजनेता एवं सूबे के कैबिनेट मंत्री आज़म खान ने पूरा कर दिया। उन्होंने इसे राजनीतिक साज़िश कहा। देश का हर चेहरा इस घटना में झलक गया, जहां समाज के लोगों ने ही ये करतूत की, रक्षक यानी पुलिस वक्त पर पहुंची नहीं, जब उनसे बात हुई तो भी आने में काफ़ी देर हुई। धरती पर जीवन देने वाले ये डॉक्टर ने भी अपनी हरकत से साबित किया कि पेशे का इंसानियत से कोई लेना देना नहीं।

आज़म ख़ान ने जिस तरह इस घटना पर जो बयान दिया, और इसे राजनीतिक षडयंत्र बताया। ये ज़ाहिर करता है कि वो इससे पलड़ा झारने की कोशिश कर रहे हैं, जो नाक़ाबिले बर्दाश्त है। अखिलेश सरकार ने भले ही इस घटना के बाद एसएसपी, सिटी एसपी, एसएचओ और उस थाने के कुछ पुलिस वालों को सस्पेंड कर के शायद ये दिखाने की कोशिश की है कि वो इस घटना को सीरीयस ले रहे हैं। मगर आज़म खान का ये बयान दुखद है।

दिल्ली में घटित निर्भया कांड हम सबको याद है। उस घटना ने न सिर्फ़ दिल्ली बल्कि पूरे देश को हिलाकर रख दिया था। जिसके एक गुनहगार ने ख़ुद को फांसी लगाकर जेल में आत्महत्या कर ली थी। निर्भया के साथ बलात्कार करने वालों में एक लड़का नाबालिग़ था, मगर उसी ने सबसे ज्यादा वहशियाना हरकत किया था। जिसे नाबालिग़ होने का ये लाभ मिला कि वो जेल से छूट गया। जिसपर काफ़ी चर्चा भी हुई थी। उसे सिर्फ इसलिए जुवेनाइल कोर्ट के ज़रिए सज़ा सुनाई गई क्योंकि उसकी उम्र निर्भया के प्राइवेट पार्ट में लोहे का रॉड घुसाने और उसके साथ बलात्कार करते समय सिर्फ़ 17 साल और 6 महीने थी। जिसका फ़ायदा ये हुआ कि वो 3 साल की सज़ा का हक़दार पाया गया और 20 दिसंबर 2015 को सज़ा पूरी कर के छूट भी गया। मगर क्या हमारा दिल गवारा करता है कि सिर्फ़ 3 साल और फिर बरी।

ऐसी गुनाह को अंजाम देने वाले उन वहशियों की सज़ा का पैमाना क्या हो ? रेप कोई मामूली घटना नहीं है, और न ही इसे हलके में लिया जाना चाहिए। जब भी कहीं वहशियाने तरीक़े से रेप होता है, लोग इस्लामी शरीअत की तर्ज़ पर सज़ा की मांग करते हैं। हाल ही में राज ठाकरे ने भी बलात्कारियों के लिए इस्लामी शरीअत के मुताबिक़ सज़ा की बात की थी। क्या सच में ये ग़ौर करने की बात नहीं कि ऐसी घिनौनी हरकत के लिए सख़्त सज़ा का कोई प्रावधान होना चाहिए। ट्रायल तेज़ होने चाहिए और जब गुनहगार की पहचान ख़ुद वो लड़की या महिला करे तो फिर मेडिकल टेस्ट के ज़रिए ये बता किया जाए कि वो सही में गुनहगार है या नहीं और जब साबित हो जाए तो फिर सज़ा ऐसी सख़्त हो कि दूसरे इससे नसीहत लें और भविष्य में ऐसे गुनाह के तादाद ख़ुद घट जाएं।

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